9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए राष्ट्रीय स्तर पर दोनों गठबंधनों ने अपने अपने उम्मीदवारों का नाम घोषित कर दिया है. एनडीए की तरफ से तमिलनाडु के सीपी राधाकृष्णन ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है. पीएम मोदी उनके पहले प्रस्तावक बनें. जो दिखाता है कि एनडीए के लिए उनकी जीत कितना मायने रखती है. वहीं विपक्ष ने पूर्व जज बी. सुदर्शन रेड्डी को अपने प्रत्याशी के तौर पर उतारा है, जो तेलंगाना से आते हैं.
इस तरह उपराष्ट्रपति पद का चुनाव इस बार न केवल सत्ता समीकरण का मामला बन गया है, बल्कि यह दक्षिण भारत की राजनीति के लिए भी प्रतिष्ठा का विषय भी बन गया है. माना जा रहा है कि इंडिया गठबंधन ने तेलंगाना के बी. सुदर्शन को उम्मीदवार बनाकर एक बड़ा राजनीतिक दांव चला है. यह फैसला न सिर्फ तेलंगाना, बल्कि पूरे दक्षिण भारत के मतदाताओं को साधने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है.
दरअसल राजनीति में क्षेत्रीय अस्मिता का मुद्दा अक्सर निर्णायक साबित हुआ है और यही कारण है कि दक्षिण भारत के दोनों नेताओं सी पी राधाकृष्णन बनाम बी. सुदर्शन की उम्मीदवारी ने अचानक से दक्षिण भारत में एक नई बहस को जन्म दे दिया है.
चंद्रबाबू नायडू और जगन मोहन रेड्डी की दुविधा
सुदर्शन रेड्डी को लेकर इंडिया गठबंधन की दलील है कि वे तेलुगू मूल से आते हैं, इसलिए आंध्र प्रदेशके सीएम चंद्रबाबू नायडू और पूर्व सीएम जगन मोहन रेड्डी को उनका समर्थन करना चाहिए.
आंध्र प्रदेश की राजनीति में तेलुगू देशम पार्टी के चंद्रबाबू नायडू पर काफी समय से यह आरोप लगता रहा है कि नायडू राष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए समय-समय पर एनडीए और विपक्ष, दोनों के बीच सामंजस्य बनाते रहे हैं. अब उनके सामने चुनौती यह है कि क्या वे तेलुगू अस्मिता को आगे रखकर बी. सुदर्शन का समर्थन करेंगे या फिर केंद्र की सत्ता से अपने रिश्तों को मज़बूत रखने की रणनीति पर कायम रहेंगे ?
वाईएसआर कांग्रेस के जगन मोहन रेड्डी की पार्टी पहले ही एनडीए का समर्थन करने का ऐलान कर चुकी है. यह कदम दिखाता है कि वे प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार के साथ रिश्ते बनाए रखना चाहते हैं.
कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की रणनीति
कांग्रेस का यह दांव साफ तौर पर दक्षिण भारत में अपनी राजनीतिक ज़मीन को और मजबूत करने की रणनाति है. तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी ने भी कहा है कि बी सुदर्शन पिछड़ी जाति से आते हैं इसलिए सभी दलों को उनका समर्थन करना चाहिए. लोकसभा चुनावों के बाद से विपक्ष को यह एहसास है कि अगर उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती पेश करनी है तो दक्षिण भारत को अपने पाले में रखना होगा. बी. सुदर्शन की उम्मीदवारी इसी लक्ष्य को साधने की कोशिश के तौर पर देखी जा रही है.
बी. सुदर्शन की हार या जीत से ज़्यादा महत्वपूर्ण यह होगा कि इस चुनाव ने दक्षिण भारत की राजनीति में एक नया नैरेटिव गढ़ दिया है.