पिछले साल यूपी के संभल में हुई हिंसा की जांच के लिए बनाई गई न्यायिक कमेटी ने गुरूवार को सीएम योगी आदित्यनाथ को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. 450 पन्ने की इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले दावे हुए हैं. जिसमें सबसे अहम है संभल की आबादी को लेकर किया गया दावा. सूत्रों की माने तो रिपोर्ट के अनुसार आजादी के बाद से संभल की डेमोग्राफी बदल गई है. जहां आजादी के समय संभल में 45 प्रतिशत हिंदु थे वहीं अब सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत ही हिंदू बचे हैं.
इसके अलावा शाही जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर को लेकर भी रिपोर्ट में जिक्र है. सूत्रों की माने तो हरिहर मंदिर के ऐतिहासिक दावे मिले हैं. हालांकि समाजवादी पार्टी ने इस रिपोर्ट को लेकर सवाल उठाया है. समाजवादी पार्टी का कहना है कि ‘गोपनीय रिपोर्ट सीएम को सौंपी जाती है लेकिन ये रिपोर्ट मीडिया को भी सौंप दी गई, ऐसे में ये रिपोर्ट गोपनीय कैसे है. ऐसी गोपनीय रिपोर्ट के बारे में जनता जानती है, ये रिपोर्ट सिर्फ ध्यान भटकाने के लिए आई है’
संभल के राजनीतिक घरानों की वायरल कहानी का सच
गुरूवार को ही एक चौंकाने वाली बात देखी गई. तमाम पत्रकारों के व्हाट्स एप पर एक रिपोर्ट आई. जिसमें संभल के दो राजनीतिक घरानों के बीच के विवाद का पूरा ब्यौरा था. ये दोनों राजनीतिक घराने नबाब इकबाल महमूद और डॉ शफीकुर्रहमान बर्क से जुड़े हुए हैं. इस वायरल कहानी में डॉ शफीकुर्रहमान बर्क और उनके पोते जियाउर्रहमान बर्क को कट्टर बताया गया और इनके समर्थकों को संभल हिंसा के लिए दोषी बताया गया. वहीं इकबाल महमूद को शॉफ्ट नेता बताया गया. दोनों परिवारों की रंजिश के पीछे तुर्क और पठान का आधार भी दिया. व्हाट्स एप पर वायरल इस कहानी के अनुसार बर्क परिवार तुर्क जाति से संबंध रखती है तो इकबाल महमूद पठान जाति से और दोनों के बीच 1960 से राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता चल रही है.
हालांकि व्हाट्स एप पर वायरल होने वाली कहानी के प्रमाणिकता की पुष्टि इंडियन प्रेस हाऊस नहीं करता है. बहरहाल संभल हिंसा की रिपोर्ट और उसके सियासी मायनों की चर्चा शुरू हो चुकी है जिसके 2027 तक और तेज होने की उम्मीद लगाई जा रही है.