पंजाब इस समय 1988 के बाद की सबसे खतरनाक प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा है. भारी बारिश और हिमाचल प्रदेश व जम्मू-कश्मीर से छोड़े गए पानी ने सतलुज, ब्यास और रावी नदियों को उफान पर ला दिया है. इसके चलते राज्य के मौसमी नाले भी खतरे के स्तर से ऊपर बह रहे हैं और चारों ओर तबाही का मंजर नजर आ रहा है.
पूरे राज्य में तबाही का आलम
राज्य के सभी 23 जिले बाढ़ की चपेट में हैं. गुरदासपुर, पठानकोट, फाजिल्का, कपूरथला, तरनतारन, फिरोजपुर, होशियारपुर और अमृतसर सबसे ज्यादा प्रभावित जिले बताए जा रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक करीब 1,655 गांव जलमग्न हो चुके हैं. खेत-खलिहान झीलों में बदल गए हैं, जिनकी गहराई 8 से 10 फीट तक पहुंच चुकी है. अब तक 35 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और लाखों लोग प्रभावित हुए हैं.
किसानों और ग्रामीणों पर दोहरी मार
किसानों की हालत सबसे ज्यादा बदहाल है. लगभग 1.5 लाख हेक्टेयर में खड़ी फसलें पूरी तरह बर्बाद हो चुकी हैं, वहीं पशुधन का भी भारी नुकसान हुआ है. ग्रामीण नावों के सहारे आवाजाही कर रहे हैं और कई लोग छतों व ऊंचे प्लेटफार्मों पर शरण लिए हुए हैं. हजारों करोड़ रुपये की फसलें और सैकड़ों घर इस आपदा में तबाह हो गए हैं.
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बाढ़ पीड़ित राज्यों पर गहरी चिंता जताते हुए केंद्र सरकार से विशेष राहत पैकेज की मांग की है.

वहीं, भाजपा अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने सहायता का आश्वासन देते हुए कहा है कि पार्टी कार्यकर्ता राहत कार्य में जुटे हुए हैं और प्रभावित परिवारों को खाना, कपड़े व दवाइयां उपलब्ध करा रहे हैं.