भारत-अमेरिका के रिश्तों में बढ़ते तनावों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सात साल बाद चीन पहुंचे हैं. तिआनजिन शहर में उनका रेड-कार्पेट पर भव्य स्वागत किया गया. पीएम मोदी यहां 31 अगस्त और 1 सितंबर को होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे हैं.
जिनपिंग और पुतिन से होगी मुलाकात
इस यात्रा को खास इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि रविवार को प्रधानमंत्री मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय बैठक तय है. इसके साथ ही, 1 सितंबर को वह रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी मुलाकात करेंगे. मौजूदा दौर में जब भारत और अमेरिका के बीच ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीति के चलते रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं, ऐसे में मोदी की जिनपिंग और पुतिन से बातचीत भारत की कूटनीति के लिहाज से बेहद अहम मानी जा रही है.
विपक्ष का हमला – ‘चीन को क्यों दी जा रही रियायतें?’
पीएम मोदी की इस चीन यात्रा पर विपक्ष ने सवाल खड़े किए हैं. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा कि “हमें चीन के साथ संबंध सामान्य करने के लिए मजबूर किया जा रहा है और वह भी ज़्यादातर उसकी शर्तों पर. चीन, भारत-अमेरिका संबंधों में आई गिरावट का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है.” उन्होंने पीएम मोदी के 19 जून 2020 के उस बयान का भी जिक्र किया जिसमें कहा गया था – “ना कोई हमारी सीमा में घुसा है, ना ही कोई घुसा हुआ है.” जयराम रमेश के मुताबिक, इस बयान ने भारत की बातचीत की क्षमता को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया.
वहीं, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी सरकार के रुख़ पर सवाल उठाते हुए कहा कि “जब चीन ने पाकिस्तान को हथियार और सैटेलाइट डेटा मुहैया कराया जिसका इस्तेमाल ऑपरेशन सिंदूर में हुआ, तो केंद्र सरकार अब चीन के प्रति सख्ती क्यों नहीं दिखा रही?”
क्या रिश्तों में सुधार की दिशा में उठेगा कदम?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोदी की यह यात्रा 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद बिगड़े भारत-चीन संबंधों में सुधार की दिशा में एक अहम कदम साबित हो सकती है. उनके मुताबिक, यह मुलाकात आपसी भरोसा बहाल करने की कोशिश है. हालांकि, चीन के पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ सैन्य रिश्ते और हिंद महासागर में उसकी बढ़ती मौजूदगी भारत के लिए अब भी बड़ी चुनौती बनी हुई है.