नेपाल में फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स, यूट्यूब और व्हाट्सएप जैसे 26 बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद सड़कों पर उबाल है. प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की सरकार द्वारा 4 सितंबर, 2025 को लागू इस प्रतिबंध ने खासकर युवाओं को भड़काया है. काठमांडू समेत कई शहरों में हजारों प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर उतरकर हिंसक विरोध किया, जिसमें संसद भवन पर हमला, आगजनी और पुलिस से झड़पें शामिल रहीं. ताज़ा जानकारी के अनुसार मौतों की संख्या बढ़कर 14 गयी है और 100 से अधिक लोग घायल हुए. हालात बिगड़ने पर कर्फ्यू और सेना की तैनाती करनी पड़ी.
सरकार का कहना है कि यह कदम पंजीकरण नियमों का पालन न करने वाले विदेशी प्लेटफॉर्म्स के खिलाफ उठाया गया. नेपाल ने 2023 के आईटी निर्देशों के तहत सभी सोशल मीडिया कंपनियों के लिए पंजीकरण, स्थानीय संपर्क बिंदु, शिकायत अधिकारी और स्व-नियमन तंत्र अनिवार्य किया था. मेटा और अल्फाबेट जैसी कंपनियों ने इसे हस्तक्षेपकारी मानते हुए पालन नहीं किया. ओली सरकार ने तर्क दिया कि यह प्रतिबंध गलत सूचना, घृणा भाषण और साइबर अपराध पर नियंत्रण के लिए आवश्यक है.
पश्चिमी सोशल मीडिया बैन के पीछे चीन का बढ़ता प्रभाव?
लेकिन भू-राजनीतिक संदर्भ इसे और जटिल बनाता है. विश्लेषकों का मानना है कि नेपाल का यह कदम चीन के डिजिटल नियंत्रण मॉडल से प्रेरित हो सकता है, जहां सरकार इंटरनेट पर सख्त निगरानी रखती है. यह संयोग भी सवाल उठाता है कि प्रतिबंध से प्रभावित ज्यादातर पश्चिमी कंपनियां हैं, जबकि चीनी प्लेटफॉर्म टिकटॉक ने नियमों का पालन किया और अब भी चालू है. आलोचकों का कहना है कि यह अप्रत्यक्ष रूप से चीनी कंपनियों को लाभ पहुंचा सकता है और कहीं न कहीं चीनी मॉडल के नक्शेकदम पर चलने की तैयारी हो सकती है, जहाँ सोशल मीडिया पर पूर्ण सरकारी नियंत्रण हो.
आलोचक इस कदम को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला और असहमति को दबाने का प्रयास मानते हैं. प्रवासी नेपाली मजदूरों और डिजिटल बिजनेस पर इसका गहरा असर पड़ा है, जिससे आर्थिक नुकसान की भी आशंका है.