नेपाल ने इतिहास रच दिया है. देश को पहली बार महिला प्रधानमंत्री मिली हैं और उनका नाम है सुशीला कार्की. लेकिन इस ताजपोशी का तरीका बिल्कुल अलग और चौंकाने वाला रहा. इस बार न तो परंपरागत चुनाव प्रक्रिया अपनाई गई और न ही सिर्फ संसद या नेताओं की मर्ज़ी चली. बल्कि, देश की नई पीढ़ी यानी Gen Z ने मोबाइल ऐप वोटिंग के ज़रिए यह तय कर दिया कि नेपाल का नया नेतृत्व किसके हाथों में होगा.
रिपोर्ट्स के मुताबिक इस वोटिंग के लिए जिस ऐप का इस्तेमाल किया गया, उसका नाम है Discord. शुरुआत में यह ऐप गेमिंग कम्युनिटी के लिए बना था ताकि खिलाड़ी चैट और वॉयस कॉल कर सकें, लेकिन धीरे-धीरे यह एक बड़ा सोशल प्लेटफॉर्म बन गया. अब यह नेपाल में लोकतंत्र के फैसले का मंच भी बन गया.
युवाओं की भारी भागीदारी ने साफ कर दिया कि नई पीढ़ी राजनीति की परंपरागत दीवारें तोड़ना चाहती है. मोबाइल ऐप वोटिंग ने उन्हें सीधे नेतृत्व चुनने की ताक़त दी और इसी वजह से सुशीला कार्की का नाम देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के तौर पर सामने आया.
लेकिन अब बड़ा सवाल यही है—क्या लोकतंत्र का यह डिजिटल प्रयोग सुरक्षित है?
मोबाइल ऐप्स पर वोटिंग का सिस्टम हैकिंग, फेक आईडी और डेटा सिक्योरिटी जैसे जोखिमों से घिरा हुआ है. आज रील के ज़माने में Gen Z जहां सब कुछ तुरंत पा लेना चाहती है,भले ही उसके लिए कितना भी बड़ा कदम उठाना पड़े,वहां दूसरी ओर उसके दूरगामी प्रभाव पर विचार बहुत आवश्यक है. विशेषज्ञों का कहना है कि तकनीक लोकतंत्र को नई दिशा दे सकती है, लेकिन इसके साथ मजबूत साइबर सुरक्षा और पारदर्शिता ज़रूरी है, वरना यह तरीका लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी भी साबित हो सकता है.
नेपाल का यह प्रयोग दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गया है. जहां एक ओर इसे नई पीढ़ी की जीत और डिजिटल क्रांति कहा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर भविष्य की सुरक्षा और पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल भी खड़े हो गए हैं.