मुंबई: जिसके नाम से कभी मुंबई की सड़के सूनी हो जाया करती थी, वो माफिया डॉन 17 साल बाद जब लौटा तो उसका स्वागत फूलों की बारिश करके की गई. दगड़ी चॉल का डैडी यानी डॉन अरुण गवली जब जेल से छूट कर अपने घर पहुंचा तो उससे मिलने वालों की कतार लगी हुई थी. गुरुवार को बायकुला पहुंचने पर परिवार और करीबी परिचितों ने उनका गुलाब की पंखुड़ियों से स्वागत किया. खांटी मराठी पोशाक में दिखे गवली ने दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन और रवि पुजारी जैसे गैंगस्टरों से सीधी टक्कर लेकर अपना नाम बनाया था. इसी के बाद उन्हें ‘डैडी’ कहा जाने लगा. गवली के डॉन बनने की कहानी इतनी चर्चित रही कि बॉलीवुड और मराठी फिल्मों में उस पर आधारित फिल्में बन चुकी हैं. एक दौर में जब मुंबई में अरुण गवली का नाम लिया जाता था तो बड़े से बड़े गैंगस्टर की भी सांसें थम जाती थीं. गवली ने मुंबई के दगड़ी चॉल को अपने साम्राज्य का गढ़ बनाया था.
डॉन बनने की दास्तान
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में 17 जुलाई 1955 को जन्मे अरुण गवली साधारण परिवार से आते थे. उनके पिता गुलाबराव मजदूरी करते थे और रोज़गार की तलाश में मुंबई आ गए थे. गवली ने भी क्रॉम्पटन ग्रीव्स और गोदरेज एंड बॉयस जैसी कंपनियों में काम किया, लेकिन जल्द ही जुआ अड्डों और गैंग की दुनिया में शामिल हो गए. मैट्रिक के बाद पढ़ाई छोड़ देने वाले गवली की ज़िंदगी ने नया मोड़ तब लिया जब वे 1980 के दशक में रामा नाइक की गैंग से जुड़े.
दाऊद से दुश्मनी और बढ़ता खौफ
1988 में रामा नाइक की हत्या के बाद गवली को शक हुआ कि दाऊद ही इसके पीछे है. इसके बाद दोनों के गैंग आमने-सामने हो गए. 26 जुलाई 1992 को गवली के शूटरों ने दाऊद की बहन हसीना पारकर के पति इब्राहिम पारकर की हत्या कर दी. इस वारदात के बाद अरुण गवली का खौफ पूरी मुंबई में फैल गया. हालांकि इस गैंगवार में दोनों ओर के कई शूटर मारे गए, लेकिन गवली तक दाऊद कभी नहीं पहुंच पाया.
दगड़ी चॉल से राजनीति तक
दाऊद के दुबई भाग जाने के बाद गवली की टक्कर छोटा राजन और रवि पुजारी से हुई. लेकिन लोकल सपोर्ट और दगड़ी चॉल के गढ़ ने गवली को मजबूती दी. पुलिस दबाव और बढ़ते गैंगवार से बचने के लिए गवली ने राजनीति की राह पकड़ी. 2004 में उन्होंने अपनी पार्टी अखिल भारतीय सेना बनाई और विधायक बने. हालांकि, 2008 में शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की हत्या के मामले में 2012 में उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. अब 17 साल की सजा काटने के बाद सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी से वे जेल से रिहा होकर अपने घर लौटे हैं. 70 वर्षीय अरुण गवली की पत्नी का नाम आशा गवली है जबकि उनकी बेटी गीता बीएमसी पार्षद रह चुकी हैं. गवली पर 2015 में मराठी फिल्म बनी थी और 2017 में अर्जुन रामपाल ने उन्हें ‘डैडी’ फिल्म में पर्दे पर जिया था. नेटफ्लिक्स पर भी उन पर आधारित वेब सीरीज आ चुकी है.
मुंबई में गैंगवार की आहट
हालांकि आशंका जताई जा रही है कि गवली के बाहर आने के बाद कहीं पुरानी रंजिश फिर ना शुरू हो जाए. पुलिस की इस पर नजर बनी हुई है. क्योंकि डी कंपनी के तमाम शूटर अभी भी बचे हुए हैं. तो वहीं छोटा राजन भी तिहाड़ जेल में बंद है लेकिन उसके गुर्गे अभी भी सक्रिय हैं. ऐसे में लोगों को शंका है कि दबी हुई गैंगवार फिर से ना भड़क जाए.