जम्मू-कश्मीर के रामबन और रियासी जिलों में बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं ने एक बार फिर प्रदेश की आपदा प्रबंधन व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं. राजगढ़ इलाके में बादल फटने से चार लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि कई लोग अब भी लापता बताए जा रहे हैं. वहीं, रियासी जिले के महौर क्षेत्र में हुए भूस्खलन में सात शव बरामद किए गए हैं. दर्जनों घर और खेत तबाह हो गए हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इस तरह की त्रासदियों को रोकने या समय रहते चेतावनी देने के लिए सरकार की तैयारी कितनी मजबूत है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि आपदा तो अचानक आई, लेकिन प्रशासनिक इंतज़ाम नाकाफी साबित हुए. गांववालों का आरोप है कि न तो समय पर कोई अलर्ट मिला और न ही बाढ़ या भूस्खलन से बचाव के लिए स्थायी व्यवस्था मौजूद थी.
अर्ली वार्निंग सिस्टम के बारे में क्या कहता है मौसम विज्ञान विभाग
दरअसल, भारत मौसम विज्ञान विभाग क्लाउडबर्स्ट की घटनाओं के बारे में पहले से सटीक अलर्ट जारी करने में सक्षम नहीं है. क्लाउडबर्स्ट एक सीमित इलाके में अचानक होती है और इसकी भविष्यवाणी करना बेहद कठिन माना जाता है. फिर भी, विशेषज्ञों का मानना है कि हाई-टेक राडार, लोकल वेदर स्टेशन और सैटेलाइट डाटा के ज़रिये कम से कम जोखिम वाले इलाकों में लोगों को पहले से सतर्क किया जा सकता है. लेकिन जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील और पहाड़ी प्रदेश में अब तक ऐसा कोई व्यापक सिस्टम लागू नहीं किया गया है.
राहत और बचाव कार्य में लगी टीमें इस वक्त हर संभव प्रयास कर रही हैं, लेकिन असली चुनौती दीर्घकालिक योजना की है. क्या पहाड़ी इलाकों में नए बांध और ड्रेनेज सिस्टम बनाए जा रहे हैं? क्या सरकार ने मॉनिटरिंग सेंटर स्थापित करने की दिशा में कोई कदम उठाया है? और सबसे अहम सवाल – क्या हमारे पास क्लाउडबर्स्ट अलर्ट सिस्टम है?
विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) की वजह से भविष्य में क्लाउडबर्स्ट और फ्लैश फ्लड जैसी घटनाएं और तेज़ी से बढ़ेंगी. ऐसे में प्रशासन और सरकार की ज़िम्मेदारी केवल राहत बांटने तक सीमित नहीं हो सकती. प्रभावित लोग इस बात पर जोर देते हैं कि अब वक्त आ गया है जब सरकार को अल्पकालिक मदद से आगे बढ़कर दीर्घकालिक समाधान की ओर देखना होगा.