भारतीय राजनीति में धनबल, बाहुबल और अपराध का गठजोड़ लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती बन चुका है. लोकतंत्र का उद्देश्य जनता की सेवा और सुशासन था, लेकिन अपराधी प्रवृत्ति के नेताओं की बढ़ती मौजूदगी ने इस लोकतांत्रिक व्यवस्था के सामने कई गंभीर समस्याएं पैदा की हैं. यह प्रवृत्ति न केवल शासन-व्यवस्था को भीतर ही भीतर खोखला कर रही है, बल्कि जनता के सामने एक छद्म लोकतंत्र खड़ा कर रही है. आज संसद और विधानसभाओं में बड़ी संख्या में ऐसे जनप्रतिनिधि बैठे हैं जिन पर हत्या, अपहरण, भ्रष्टाचार और महिला उत्पीड़न जैसे गंभीर मामले लंबित हैं.
अब एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और नेशनल इलेक्शन वॉच ने देश की राज्य विधानसभाओं, केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्रीय मंत्रिपरिषद के वर्तमान मंत्रियों के शपथपत्रों का विश्लेषण करते हुए मंत्रियों पर दर्ज आपराधिक मामलों पर रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में 27 राज्यों की विधानसभाओं, 3 केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्रीय मंत्रिपरिषद के कुल 652 में से 643 मंत्रियों का विश्लेषण किया गया है.
यह डेटा चुनाव आयोग के पास जमा किए गए शपथपत्रों (फॉर्म 26) से निकाला गया है, जिसे उम्मीदवारों अर्थात वर्तमान रिपोर्ट में सम्मिलित मंत्रियों ने 2020 से 2025 के बीच हुए चुनावों के समय प्रस्तुत किए थे.

27 प्रतिशत मंत्रियों पर हैं गंभीर आपराधिक मामले
एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार विश्लेषण किए गए 643 में से 302 (47 प्रतिशत) मंत्रियों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किये हैं.
इसके अलावा 174 यानी 27 प्रतिशत मंत्रियों ने अपने ऊपर गंभीर आपराधिक मामले घोषित किये हैं, जिनमें हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं के ऊपर अत्याचार से सम्बन्धित अपराध इत्यादि शामिल है.
किन दलों में कितने मंत्रियों पर दर्ज हैं आपराधिक मामले ?
बीजेपी के 336 में से 136 (40 प्रतिशत)
कांग्रेस के 61 में से 45 (74 प्रतिशत)
तृणमूल कांग्रेस के 40 में से 13 (33 प्रतिशत)
डीएमके के 31 में से 27 (87 प्रतिशत)
तेलुगु देशम पार्टी के 23 में से 22 (96 प्रतिशत)
आम आदमी पार्टी के 16 में से 11 (69 प्रतिशत)
जेडीयू के 14 में से 4 (29 प्रतिशत)
शिव सेना के 13 में से 7 (54 प्रतिशत)
किन दलों के कितने मंत्रियों पर दर्ज हैं गंभीर आपराधिक मामले?
बीजेपी के 336 में से 88 (26 प्रतिशत)
कांग्रेस के 61 में से 18 (30 प्रतिशत)
तृणमूल कांग्रेस के 40 में से 8 (20 प्रतिशत)
डीएमके के 31 में से 14 (45 प्रतिशत)
तेलुगु देशम पार्टी के 23 में से 13 (57 प्रतिशत)
आम आदमी पार्टी के 16 में से 5 (31 प्रतिशत)
जेडीयू के 14 में से 1 (7 प्रतिशत)
शिव सेना के 13 में से 3 (23 प्रतिशत)
राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए समय-समय पर न्यायपालिका, चुनाव आयोग, नागरिक संगठनों ने समय-समय पर मांगें उठाई हैं. यह भी मांगे उठती रहीं हैं कि ऐसे नेताओं के आपराधिक रिकॉर्ड सार्वजनिक कर उन्हें चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराया जाये, पर फिलहाल इस दिशा में कोई सख़्त कदम नहीं उठ सके हैं.