जानी-मानी लेखिका रमणिका गुप्ता अपनी बेबाकी और बोल्डनेस के लिए अपने दौर में काफी मशहूर रहीं. उनकी धमक ने न सिर्फ साहित्य-जगत में बल्कि राजनीतिक क्षेत्र में भी समाज के स्त्रियों के लिए बने-बनाये सांचे को तोड़ डाला था. रमणिका गुप्ता अपने लेखन में लगातार स्त्रियों की मुक्ति और यौन-इच्छा की स्वंतंत्रता पर जोर देती रही थीं. इसी के साथ जब उनकी दो खण्डों में प्रकाशित आत्मकथा ‘आपहुदरी’ आई, तो देश भर में चर्चा का विषय बन गई.
अपनी आत्मकथा में रमणिका ने न सिर्फ अपने निजी जीवन के सेक्रेट्स खोले, बल्कि अपने राजनीतिक करियर से जुड़े कई बड़े नेताओं के साथ अपने अंतरंग संबंधों का भी खुलासा की. ऐसा ही किस्सा है, जब खुद रियासत के महाराजा ने बढ़ाया था लेखिका रमणिका गुप्ता की ओर दोस्ती का हाथ.
अपनी आत्मकथा में रमणिका लिखती हैं कि – एक दिन उनके पापा जी ने बताया कि महाराजा साहब के यहां से संदेश आया है कि महारानी साहिबा उनसे मिलना चाहती हैं. उन्हें हैरानी हुई कि भला रियासत की महारानी को उनसे क्या काम हो सकता है ?
खैर, रमणिका और उनकी भाभी दोनों महारानी साहिबा से मिलने उनके महल जा पहुंची. जैसे ही महारानी ने उन्हें देखा उनकी तारीफ़ करती हुई वो बोलीं – “बहुत सुंदर लग रही है.”
वे बताती हैं कि चूंकि वो मुम्बई से आई थीं और उन्होनें अपने बालों को घुंघराले करा रखा था, ये छोटे शहर फरीदकोट के लिए नई बात थी और लोग उनकी खूबसूरती की बातें करते रहते थे. इस बीच महाराजा साहब भी वहां आ गए. आये हुए मेहमानों को देखकर वे महारानी से बोले कि “मां, मैं इन्हें संतरे के बाग दिखा लाता हूं.” उसके बाद महाराजा साहब अपने हेलीकॉप्टर में बैठाकर उन्हें ऊपर से बाग में घुमाया और उतारकर बाग में ले गए.
वे उन लम्हों को याद करते हुए लिखती हैं कि ‘लौटते समय मैं राजा साहब के बगल वाली सीट पर बैठी थी और भाभी पीछे. मुझे लगा कि वे मुझे कनखियों से देख रहे थे. वो खुद हेलीकॉप्टर चला रहे थे. हम लोग उतरकर कमरे में आए. भाभी को उन्होंने महारानी साहिबा के पास भेज दिया, तब राजा साहब ने मेरा हाथ दबाते हुए कहा – “जब मन हो, तुम बाग में घूमने चली आना, मुझे अच्छा लगेगा. मैंने धीरे से सिर हिलाकर हामी भर दी.’
अपनी गाड़ी में बैठाकर घुमाते थे गांव
महाराजा साहब बहुत ही शांत और सादगी भरे स्वभाव के थे. वो मुझे अपनी गाड़ी में बैठाकर गांव के लोगों से मिलवाने ले गए. रास्ते में उन्होंने कहा – “आपको यहां की जिंदगी दिखाना चाहता हूं.”
गांववाले उन्हें बहुत सम्मान से देखते थे. उनकी बातें सुनकर मुझे लगा कि वे मुझसे सिर्फ सामाजिक रिश्ता नहीं, बल्कि एक आत्मीय रिश्ता कायम करना चाहते हैं. इस मुलाकात के बारे में वे बताती हैं कि घर लौटते समय उनकी भाभी ने उनसे मजाक में कहा था कि “तुम तो महाराजा पर दीवानी हो गई हो.” तब उन्होनें मुस्कुराकर जवाब दिया था कि “भाभी, हर दीवाने से रिश्ता नहीं बनता. ये रिश्ता तो खुद ही बन गया है.”
धीरे-धीरे यह रिश्ता आत्मीयता और गहराई में बदल गया. वह सिर्फ राजा होने का नहीं, बल्कि एक सच्चे दोस्त और सहारा बनने का एहसास दिला रहे थे. कुछ दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा. कभी-कभी वे मेरा हाथ पकड़ लेते या सहला देते और मैं भी हंसते हुए वैसा ही कर देती.
लेकिन वो कहते हैं ना कि ऐसी बातें छिपती नहीं है. जल्द ही फरीदकोट में राजा साहब और रमणिका गुप्ता को लेकर चर्चाएं होने लगी. वे बतातीं हैं कि ‘धीरे-धीरे शहर में यह बात फैल गई थी कि डॉक्टर साहब की बेटी का महाराजा साहब से संबंध है. बीबी जी को यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगा. उन्होंने मुझे डांटा और बुलाना बंद कर दिया.’ इस तरह ये कहानी इसी मोड़ आगे नहीं बढ़ पाई. हालांकि रमणिका गुप्ता बाद में देश की सियासत में काफी आगे तक गईं.