पटना: राहुल गांधी ने अपनी राजनीतिक पहचान पदयात्राओं के जरिए गढ़ी है और अब बिहार से शुरू हुई ‘वोट अधिकार यात्रा’ उसी परंपरा की अगली कड़ी मानी जा रही है. इससे पहले कन्याकुमारी से कश्मीर तक ‘भारत जोड़ो यात्रा ‘ के बाद यह उनकी पांचवीं बड़ी यात्रा है. रविवार को सासाराम से शुरू हुई इस यात्रा में राहुल गांधी और बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव साथ चल रहे हैं. वहीं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी जल्द इसमें शामिल होंगे. समाजवादी पार्टी के मुखिया एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी जुड़ेंगे. वे 28 अगस्त को सीतामढ़ी में राहुल और तेजस्वी के साथ यात्रा में शामिल होंगे. कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने बुधवार को सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए इसकी जानकारी दी.
क्यों अहम है यह यात्रा?
यह यात्रा ऐसे समय हो रही है जब सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर विपक्ष की चिंताओं को मानते हुए चुनाव आयोग को नए ड्राफ्ट रोल की पारदर्शिता पर निर्देश दिए हैं. विपक्ष का आरोप है कि SIR प्रक्रिया के जरिए पलायन कर चुके मजदूरों, गरीबों और हाशिये पर खड़े तबकों के वोटर लिस्ट से नाम गायब किए जा सकते हैं — और यह वही वर्ग है जो BJP का विरोधी माना जाता है.
राहुल की रणनीति और नई पहचान
16 दिनों की इस यात्रा में राहुल गांधी 20 जिलों से गुजरते हुए 1300 किमी की दूरी तय करेंगे. RJD और CPI-ML जैसे सहयोगी दलों ने इसे सामाजिक न्याय की लड़ाई का नया मंच बताया है. राहुल गांधी जाति जनगणना, आरक्षण की सीमा हटाने और गरीब तबकों के अधिकारों को केंद्र में रखकर विपक्ष की एकजुटता को नई पहचान देने की कोशिश कर रहे हैं.
विपक्ष के नेताओं के जुड़ने से क्या जाएगा संकेत?
इस यात्रा को अब समाजवादी पार्टी का भी साथ मिल रहा है. अखिलेश यादव के शामिल होने से साफ संकेत मिलता है कि बिहार में विपक्ष सिर्फ SIR विवाद ही नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और बहुजन समाज को साधने की साझा रणनीति पर आगे बढ़ रहा है. ठीक वैसे ही, जैसे यूपी में PDA (पिछड़ा, दलित, आदिवासी) फार्मूला ने BJP को चुनौती दी थी. वहीं चर्चाओं की माने तो तमिलनाडु के सीएम स्टालिन और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन भी इस यात्रा में शामिल हो सकते हैं.
तेजस्वी का आक्रामक अंदाज
शेखपुरा में यात्रा के दौरान तेजस्वी यादव ने कहा, “ये लोग आपसे सिर्फ वोट अधिकार नहीं छीन रहे, बल्कि आपका अस्तित्व छीनना चाहते हैं. बिहारियों को चूना लगाने की सोच रहे हैं, लेकिन बिहारवासी खैनी में ही चूना रगड़ देते हैं.” उन्होंने खुद को बिहार का “भाई” बताते हुए राहुल गांधी को “बड़े भाई” कहकर धन्यवाद दिया और इस लड़ाई में विपक्षी एकजुटता का संदेश दिया.
चुनावी सियासत पर असर
अब जब बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक है, यह यात्रा विपक्ष के लिए सिर्फ जनसंपर्क अभियान नहीं, बल्कि वोटर अधिकार और सामाजिक न्याय का एकजुट मंच बन गई है. जहां एक तरफ NDA विकास परियोजनाओं और कल्याणकारी घोषणाओं के जरिए मैदान मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, वहीं विपक्ष इस यात्रा को अपनी सबसे बड़ी ताकत बना रहा है.