इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मृतक आश्रित कोटे के तहत होने वाली नियुक्तियों पर बड़ा फैसला सुनाया है. उच्च न्यायालय ने साफ किया है कि यदि ऐसी नियुक्ति के समय मृतक के बेटे या बेटी इस कोटे के तहत तथ्यों को छिपाया है तो, नियुक्ति वैध नहीं मानी जाएगी. यह निर्णय उन मामलों में महत्वपूर्ण मार्गदर्शक साबित होगा, जहां तथ्यों को छिपाकर नौकरी हासिल की गई है.
क्या है मामला ?
यह मामला बस्ती जिले का है. यहां जिला पंचायत राज अधिकारी ने 28 अगस्त 2021 को राहुल नामक कर्मचारी की मृतक आश्रित कोटे से हुई नियुक्ति को निरस्त कर दिया था.
इस नियुक्ति को निरस्त करने के पीछे हवाला दिया गया था कि राहुल ने आवेदन करते समय यह तथ्य छिपाया था कि उनकी मां पहले से ही सरकारी प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापिका के पद पर कार्यरत थीं.
राहुल ने इस आदेश को चुनौती दी थी, जिसपर एकल जज ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया था. इसके बाद, उत्तर प्रदेश सरकार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट की खंडपीठ में विशेष अपील दाखिल की थी.
सरकार ने मृतक आश्रित सेवा नियमावली का दिया हवाला
सरकार का पक्ष था कि मृतक आश्रित सेवा नियमावली के नियम 6 में साफ लिखा है कि यदि मृतक कर्मचारी का पति या पत्नी पहले से सरकारी नौकरी में है, तो परिवार के किसी अन्य सदस्य को आश्रित कोटे से नौकरी नहीं दी जा सकती. सरकार की तरफ से आरोप लगाया कि राहुल ने यह तथ्य जानबूझकर छिपाया और गलत तरीके से नौकरी प्राप्त की.
कर्मचारी ने कहा- आवेदन फॉर्म में कॉलम ही नहीं था
वहीं, राहुल ने अपनी दलील में कहा कि आवेदन फॉर्म में ऐसा कोई कॉलम ही नहीं था जिसमें मां की नौकरी का विवरण देना अनिवार्य हो. उन्होंने यह भी कहा कि वह 10 साल से अधिक समय से सेवा दे रहे हैं, इसलिए इस अवस्था में उनकी नौकरी छीनना न्यायसंगत नहीं है.
हाईकोर्ट ने दिया फैसला
अब न्यायमूर्ति एम. के. गुप्ता और न्यायमूर्ति अरुण कुमार की खंडपीठ ने सरकार की दलीलों को सही मानते हुए एकल जज के आदेश को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि नियम 6 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मृतक आश्रित कोटे का लाभ केवल उन्हीं परिवारों को मिले जिनकी आय का मुख्य साधन अचानक खत्म हो गया हो. यदि पति या पत्नी पहले से सरकारी नौकरी में है, तो परिवार को आर्थिक सुरक्षा उपलब्ध है, इसलिए आश्रित कोटे से नौकरी देना नियमों के विपरीत है.