नेपाल में हाल ही में तख्तापलट करने वाले जेन-जी आंदोलन के नेतृत्वहीन हो जाने के बाद देश की राजनीतिक स्थिति गंभीर संकट में फंसी हुई है. भीषण हिंसा और अराजकता के बीच नेपाली सेना स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है, लेकिन शांति बहाल करना अभी भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है. वहीं 9 सितंबर के बाद से अभी तक नेपाल में प्रधानमंत्री पद के लिए किसी नाम पर सहमति नहीं बन पाई है.
हालांकि अंतरिम सरकार के गठन की मांग जोर पकड़ रही है और इस पर पूर्व न्यायधीश सुशीला कार्की, और काठमांडू के मेयर बालेन शाह के नाम चर्चा भी चल रही है. लेकिन दोनों ही नेताओं ने नेपाली संसद को भंग करने की मांग की है, जिसे राष्ट्रपति और संसद फिलहाल स्वीकार नहीं कर रहे हैं. ऐसे में नेपाल में संवैधानिक और राजनीतिक संकट और गहराता जा रहा है.
बालेन सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं, पर पॉलिटिकल डायलॉग में वे शामिल नहीं हो रहे हैं. जेन-जी प्रदर्शनकारियों ने पीएम पद के लिए उनका समर्थन किया था, पर उन्होंने ऑफर ठुकरा दिया. वहीं सुशीला कार्की अभी तक पॉलिटिकल डायलॉग में तो बनी हुईं हैं. उनको पीएम बनाने के लिए नेपाल के संविधान आपातकाल के तहत राष्ट्रपति और मुख्य राजनैतिक दलों के नेता सहमत हुए थे. पर सुशीला अब संसद को भंग करने की मांग कर रही हैं, जिसे राष्ट्रपति अस्वीकार कर रहे हैं.
बालेन शाह की मांग भी संसद भंग करके अंतरिम सरकार के गठन की है. हालांकि संसद को विघटित कर देना नेपाल के लोकतंत्र के लिए घातक हो सकता है, इसलिए राष्ट्रपति इस मांग को स्वीकृति नहीं दे रहे हैं. इसी को लेकर नेपाल कांग्रेस के नेता विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. जिसमें पत्रकार, वकील, डॉक्टर्स संविधान की रक्षा के लिए विरोध-प्रदर्शन में शामिल हो चुके हैं. जो माहौल को और गंभीर बना रहा है.
नेपाल में संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो संसद का सदस्य नहीं है, वह प्रधानमंत्री नहीं बन सकता. साथ ही, पूर्व न्यायाधीशों (EXCJ) को किसी भी राजनीतिक नियुक्ति में शामिल करना संविधान के तहत स्वीकृत नहीं है. लेकिन वर्तमान राजनीतिक संकट और क्राइसिस को देखते हुए, राष्ट्रपति ने इन दोनों संवैधानिक धाराओं को अस्थायी रूप से पार करने की सहमति दे दी है. वहीं, संसद इस प्रस्ताव पर अभी तक सहमत नहीं है और इसे मंजूरी देने में हिचकिचा रही है.