नेपाल में हुए तख्तापलट के बाद अब फ्रांस की सड़कों पर भी लाखों की संख्या में लोग सरकार के खिलाफ उतर आये हैं. बुधवार को मैंक्रो सरकार की नीतियों से असंतुष्ट लोगों ने राजधानी पेरिस सहित देशभर में 30 से ज्यादा जगहों पर विरोध प्रदर्शन किए. ऐसे में नेपाल के बाद अब फ्रांस पर राजनीतिक और आर्थिक संकट गहराता नजर आ रहा है.
क्यों पेरिस की सड़कों पर उतरे लोग ?
दरअसल फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने देश में चल रही राजनीतिक अस्थिरता के बीच रक्षा मंत्री लेकोर्नू को नया प्रधानमंत्री बनाया है, जो उनके करीबी माने जाते हैं. फ्रांस में एक साल के भीतर वे चौथे प्रधानमंत्री बने हैं. इसके साथ ही लेकोर्नू को 2026 का बजट पेश करने और संसद से पारित करवाने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी, जिसके बाद सरकार के बजट के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आये हैं.
इससे पहले जुलाई में फ्रांस के पूर्व प्रधानमंत्री बायरू ने साल 2026 के लिए बजट फ्रेमवर्क पेश किया था, जिसमें लगभग 44 अरब यूरो (करीब 4 लाख करोड़ रुपए) बचाने की योजना शामिल थी, जिसके तहत सरकार ने सार्वजनिक खर्च में कटौती की बात कही थी.
बायरू का कहना था कि देश का ऋण अब काफी बढ़ चुका है, जिसे नियंत्रित करना जरूरी हो गया है. उन्होंने यह भी बताया था कि फ्रांस का लोन देश की जीडीपी का 113% हो चुका है.
सार्वजनिक खर्च में कटौती के प्रस्ताव का विपक्ष ने काफी विरोध किया था. विपक्ष के वामपंथी दल और मजदूर संगठनों ने इसे गरीब और आम-जनता के हितों के खिलाफ बताया था, साथ ही देश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति के लिए इमैनुएल मैक्रों सरकार का नीतियो की निंदा भी की थी.
“ब्लॉक एवरीथिंग” मूवमेंट से भड़की विद्रोह की आग
विरोध की आग “ब्लॉक एवरीथिंग” मूवमेंट से भड़की, जिसकी शुरुआत सोशल मीडिया से हुई थी. यह आंदोलन पूर्व प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू की बजट नीतियों के खिलाफ चला. इस बजट के तहत पेंशन और सामाजिक योजनाओं में भारी कटौती की गई, जिससे जनता में असंतोष फैल गया. इन्हीं घटनाक्रमों के चलते सोमवार को पीएम फ्रांस्वा बायरू ने संसद में विश्वास मत खो दिया और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.
पुलिस हिरासत में 200 प्रदर्शनकारी
कई स्थानों पर प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें भी हुईं हैं. तोड़फोड़ और आगजनी की भी खबरें आई हैं. हालात काबू में रखने के लिए सरकार ने 80 हजार पुलिसकर्मी तैनात किए हैं और अब तक करीब 200 लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है.
वामपंथी दलों और मजदूर यूनियनों ने दी चेतावनी
वामपंथी दलों और मजदूर यूनियनों का कहना है कि मैक्रों सरकार की नीतियां सीधे आम लोगों पर बोझ डाल रही हैं. यूनियन नेताओं ने चेतावनी भी दी है कि जब तक राष्ट्रपति खुद पद नहीं छोड़ते, विरोध प्रदर्शन जारी रहेंगे.