पूर्व केन्द्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी इन दिनों सियासी गलियारे से लेकर सोशल मीडिया तक चर्चा के केन्द्र बने हुए हैं. हाल ही रूडी ने दो इंटरव्यू दिए. जिसके बाद हर जगह उनके बयान की चर्चा है. एक इंटरव्यू में वो बिहार में राजपूत समुदाय की सियासी ताकत के बारे बताते हुए दावा करते हैं कि ‘आज की तारीख में हम या तो 70 विधानसभामें जीत सकते हैं या जीताने की क्षमता रखते हैं.
हालांकि रूडी ने अपने इंटरव्यू में किसी दूसरी जाति का नाम नहीं लिया. लेकिन यही से एक चर्चा शुरू हो गई. खासकर सोशल मीडिया पर. सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर रूडी के समर्थन में #श्रीराम_वंशी_रूडी ट्रेंड करने लगा. जिसमें रूडी के समर्थन में पोस्ट किए जाने लगे. इसके बाद #राम_विरोधी_रूडी ट्रेंड हुआ. जिसमें रूडी का विरोध किया जाने लगा गया. देखते ही देखते सोशल मीडिया पर ये विमर्श राजपूत बनाम भूमिहार या राजपूत बनाम ब्राह्मण का बन गया.

इस पूरे मामले पर वरिष्ठ पत्रकार रोहित कहते हैं कि ‘दरअसल ये विवाद बिहार में हुई जाति जनगणना के बाद से शुरू हुआ. तमाम अपर कास्ट को उम्मीद थी की उनकी आबादी ज्यादा होगी. भूमिहार को यकीन नहीं हुआ की उनकी आबादी 2.5 फीसदी के करीब है. वैसे ही ब्राह्मणों को यकीन नहीं हुआ की वो सिर्फ 3.5 फ़ीसदी हैं और राजपूतों को भी मलाल है कि वो 3.5 फ़ीसदी हैं. तो फिर सवाल उठता है की राजपूतों की राजनीति और नेतृत्व की बात कहां से और क्यों उठाने लगी. अभी चुनाव का समय है ऐसे में राजीव प्रताप रूडी का बयान इसी सन्दर्भ में लगता हैं. क्योंकि बिहार के सवर्ण पॉलिटिक्स में अभी तक सबसे बड़ा खेमा भूमिहार का रहा है. फिर ब्राह्मण का लेकिन राजपूत अब अगुआ बनना चाहता है और राजीव प्रताप रूडी इस वर्ग का नेतृत्व करने की कोशिश में हैं’.
तो क्या वाकई बिहार में सवर्ण पॉलिटिक्स के भीतर नेतृत्व को लेकर पर्दे के पीछे संघर्ष चल रहा है. सवाल ये भी है कि क्या बिहार में राजपूत 70 विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में है. और ये वर्ग बीजेपी के साथ है?
बिहार की राजनीति को करीब से देखने वाले राजनीतिक विश्लेषक प्रियदर्शी रंजन राजपूत वर्ग के वोटिंग पैटर्न के बारे में बताते हैं कि ‘बिहार की राजनीति में राजपूत समुदाय राजनीतिक तौर पर बेहद सफल मानी जाती है. संख्या बल कुछ भी हो लेकिन इनकी चुनावी सफलता का कोई जोड़ नहीं है. हर सामाजिक समीकरण में राजपूत फिट हो जाते हैं. चाहे सवर्ण राजनीति हो या पिछड़ा राजनीति, राजपूतों की मौजूदगी होती ही है. अगड़ी जाती होने के कारण सवर्ण राजनीति में फिट हो जाते हैं तो मंडल कमीशन लागू करने का श्रेय लेकर पिछड़ों की राजनीति में भी दावेदार बन जाते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राजपूत, जाति के तौर पर बिहार में बेहद संगठित और संवेदनशील होते है. किसी दल के प्रति प्रतिबद्धता से ज्यादा इनके लिए महत्वपूर्ण इनका अपना समीकरण होता है. यही कारण है राजपूत समुदाय किसी भी सीट पर अपनी जाति का उम्मीदवार देखता है ना कि पार्टी’.
बीजेपी की तरफ ज्यादा झुकाव नजर आने के बावजूद आंकड़े भी इस बात की गवाही देते हैं कि राजपूत मतदाता किसी एक पार्टी के वोटर नहीं हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो राजपूत जाति के कुल 28 विधायक चुने गए. जिनमें बीजेपी के पास सबसे ज्यादा 15 विधायक हैं तो आरजेडी के पास 7 विधायक हैं. जेडीयू के कोटे में 2 और कांग्रेस के कोटे में 1 विधायक हैं. हाल ही में राजीव प्रताप रूडी ने बिहार में सांगा यात्रा भी निकाली. जिसको लेकर सियासी पंड़ितों का मानना है कि वो बिहार में राजपूत जाति के नेतृत्व पर अपना दावा कर रहे हैं. फिलहाल बिहार में चुनावी माहौल चल रहा है. ऐसे में सोशल मीडिया पर चल रहे हैशटैग वॉर के चुनाव तक और तेज होने तथा जातीय वर्चस्व की भावना के भी उफान पर जाने की उम्मीद है.