बिहार SIR मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला दिया. जिससे बिहार के लाखों मतदाताओं को बड़ी राहत मिलने वाली है. SC ने एसआईआर के मामले पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट कर दिया कि ‘अब आधार कार्ड को 12वें पहचान दस्तावेज़ के रूप में माना जाएगा’. यानी आधार को भी वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने के लिए पहचान पत्र के तौर पर प्रस्तुत किया जा सकेगा. हालांकि कोर्ट ने यह भी साफ किया कि आधार न तो नागरिकता और न ही निवास का प्रमाण होगा.
याचिकाकर्ताओं की दलील
राजद और अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील देते हुए कहा कि ‘सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित तीन आदेशों के बाद भी इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर्स और बूथ लेवल के अधिकारी इसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं. BLO नागरिकता तय करने का अधिकार नहीं रखते हैं, ऐसे में आधार को पहचान पत्र के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पहले आदेश के बावजूद BLO केवल 11 दस्तावेज़ों को ही स्वीकार कर रहे थे’.
साथ ही सिब्बल ने यह भी कहा कि ‘आधार कार्ड जनता के पास सर्वत्र उपलब्ध दस्तावेज़ है. अगर वे इसे स्वीकार नहीं कर सकते तो वे किस तरह का समावेशन अभियान चला रहे हैं? वे गरीबों को इससे बाहर रखना चाहते हैं.’
चुनाव आयोग का तर्क नहीं चला
वहीं, चुनाव आयोग की तरफ से वकील राकेश द्विवेदी ने बताया कि ‘बिहार में 7.24 करोड़ मतदाताओं में से 99.6% ने ज़रूरी दस्तावेज़ जमा कर दिए हैं, जबकि केवल 65 लाख लोगों ने आधार प्रस्तुत किया है. आयोग ने माना कि आधार डिजिटल रूप से अपलोड किया जा सकता है, लेकिन इसे नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता. चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि 0.3 प्रतिशत लोग अवैध प्रवासी पाए गए हैं, जिन्हें लिस्ट में शामिल करना संभव नहीं है’.
जस्टिस सूर्यकांत ने क्या कहा ?
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि ‘कानून के तहत आधार एक आधिकारिक दस्तावेज़ है और आयोग को इसे शामिल करना होगा. आयोग इसकी सत्यता की जांच भी करेगा’.
वहीं जस्टिस बागची ने भी कहा कि ‘11 दस्तावेजों में पासपोर्ट और जन्म प्रमाणपत्र को छोड़कर कोई भी दस्तावेज़ नागरिकता का अंतिम प्रमाण नहीं है, ऐसे में आधार को पहचान पत्र के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए’.
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि आधार को केवल पहचान के लिए इस्तेमाल किया जाएगा और आयोग को इस पर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने होंगे, ताकि नीचे तक जानकारी सही तरीके से पहुंचे.
इस मामले में पैरवी कर चुके योगेन्द्र यादव ने एक्स पर अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होने कहा कि ‘आख़िरकार दो महीने की कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने वोटबंदी की साज़िश पर विराम लगाया. आज के आदेश में स्पष्ट कहा गया कि SIR में आधार को अब 12वां वैध दस्तावेज़ मानना होगा. इस एक फ़ैसले ने बिहार ही नहीं, पूरे देश में करोड़ों लोगों का मताधिकार बचाया है’.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले चुनाव आयोग को तगड़ा झटका लगा है.