न्यायपालिका में जजों की नियुक्तियों को लेकर कॉलेजियम सिस्टम की भूमिका अक्सर चर्चाओं में रहती है. इस मुद्दे पर कॉलेजियम सिस्टम की पारदर्शिता, ज्यूडिशियल पद की नैतिकता और जज की अपनी योग्यता को लेकर एक बार फिर से बहस छिड़ गयी है. मामला हाल ही में नियुक्त 14 जजों से जुड़ा हुआ है. जिसमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई के भांजे राज वाकोडे का नाम भी शामिल था.
वरिष्ठ अधिवक्ता राज वाकोडे बने अतिरिक्त न्यायाधीश
अगस्त 2025 के अंतिम सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने बॉम्बे हाईकोर्ट के लिए 14 जजों के नामों की सिफारिश की थी, जिनमें राज वाकोडे का नाम भी शामिल था. 28 अगस्त को केंद्र सरकार ने उनकी नियुक्ति की अधिसूचना जारी की और 29 अगस्त को उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. अब उनकी नियुक्ति के बाद से कुछ कानूनी विशेषज्ञों ने कॉलेजियम सिस्टम की पारदर्शिता पर सवाल खड़े किये हैं.
पूर्व जस्टिस अभय एस. ओका ने उठाये सवाल
जस्टिस राज वाकोडे की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस अभय एस. ओका ने कहा है कि ‘जिस कॉलेजियम ने उनके नाम की सिफारिश की है, उससे सीजेआई बीआर गवई को अलग होना जाना चाहिए था.’ उन्होंने बार ऐंड बेंच को दिए इंटरव्यू में कहा कि ‘मैं अपनी बात बिलकुल साफ़ कहना चाहता हूं. अगर किसी ऐसे उम्मीदवार का नाम उच्च न्यायालय की सिफारिश से आता है, जिसका कोई संबंधी कॉलेजियम में है और विशेष रूप से अगर वह मुख्य न्यायाधीश का ही संबंधी है, तो मुख्य न्यायाधीश को कॉलेजियम से अलग हो जाना चाहिए था.’
उन्होंने यह भी कहा कि ‘मुझे नहीं पता कि उन्होंने ऐसा किया या नहीं. पर उन्हें अलग होकर कॉलेजियम का विस्तार कर एक और सीनियर जज को शामिल करना चाहिए था. फिर नए कॉलेजियम के सामने ही संबंधित व्यक्ति के नाम पर चर्चा होनी चाहिए थी.’
राज दामोदर वाकोडे के समर्थन में तर्क
दूसरी ओर कुछ विशेषज्ञों ने राज दामोदर वाकोडे के समर्थन में कहा है कि वाकोडे महाराष्ट्र के वरिष्ठ अधिवक्ता रहे हैं और योग्य वकील हैं, इसलिए सिर्फ रिश्तेदारी के आधार पर उन्हें न्यायपालिका में अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता.