भारत के सबसे प्रभावशाली कारोबारी परिवारों में शुमार अंबानी परिवार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रिश्ते हमेशा से चर्चा का विषय रहे हैं. लंबे समय से विपक्ष खासकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी, अंबानी परिवार और मोदी सरकार के रिश्तों पर सवाल उठाते रहे हैं. माना जाता है कि 2014 के बाद से कई व्यापारिक फैसलों का सीधा लाभ भी रिलायंस ग्रुप को मिलता रहा है. रॉफेल डील को लेकर भी ये सवाल उठे थे अनिल अंबानी को बिना किसी अनुभव के रक्षा क्षेत्र में रॉफेल का आफसेट पार्टनर क्यों बनाया गया. इसके अलावा हालिया उदाहरण के तौर पर रूस से तेल आयात के मुद्दे पर भी ये चर्चा तेज है कि इस डील में भी रिलायंस को भारी मुनाफा हुआ. लेकिन हाल के घटनाक्रमों से इन रिश्तों की सूरत बदलती दिखाई दे रही है.
वनतारा विवाद: संरक्षण या प्रतिष्ठा का प्रतीक?
जामनगर में अनंत अंबानी द्वारा स्थापित वनतारा प्रोजेक्ट को दुनिया का सबसे बड़ा वन्यजीव संरक्षण केंद्र बताया जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं इसका उद्घाटन किया था, जो इस प्रोजेक्ट की प्रतिष्ठा और राजनीतिक समर्थन का संकेत था. मगर अब यही वनतारा सुप्रीम कोर्ट की विशेष जांच टीम (SIT) के घेरे में है. जानवरों की तस्करी, वन्यजीव संरक्षण कानून का उल्लंघन, CITES समझौते की अनदेखी और जानवरों को शोपीस की तरह पेश करना जैसे आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व जज की अगुवाई में SIT गठित की है, जिसे 12 सितंबर तक रिपोर्ट सौंपनी है. यह तथ्य वनतारा की पारदर्शिता और अंबानी-मोदी समीकरण दोनों पर सवाल खड़ा करता है.
अनिल अंबानी पर CBI का शिकंजा
उधर, अंबानी परिवार के दूसरे धड़े में भी मुश्किलें कम नहीं. 23 अगस्त को CBI ने अनिल अंबानी के मुंबई स्थित ‘सी विंड’ आवास और RCOM दफ्तरों पर छापेमारी की. आरोप है कि 2013–2017 के बीच लगभग ₹2,929 करोड़ का बैंक घोटाला हुआ.
SBI की शिकायत पर हुई इस कार्रवाई में लोन दुरुपयोग, फर्जी खातों और इंटर-कंपनी ट्रांजेक्शन्स की बातें सामने आई हैं. अनिल अंबानी का कहना है कि उस समय वे गैर-कार्यकारी निदेशक थे और इन्हें “चुनिंदा निशाना” बनाया जा रहा है. CBI एक बार फिर अनिल अंबानी को पुछताछ के लिए बुला सकती है.
रिश्तों की बदलती तस्वीर और उसका इतिहास
मुकेश अंबानी के खिलाफ गुजरात के वनतारा प्रोजेक्ट को लेकर SIT जांच और अनिल अंबानी के घर पर हुई हालिया CBI रेड ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वाकई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अंबानी परिवार के रिश्तों में दरार आ गई है? या यह सब सत्ता और राजनीति के दबाव का हिस्सा है?
यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि अंबानी परिवार और मोदी के रिश्ते दशकों से सुर्खियों में रहे हैं. अतीत में कई मौकों पर अंबानी बंधुओं ने खुले मंच से मोदी की तारीफ की है. जनवरी 2009 में अनिल अंबानी ने मोदी को “विजनरी लीडर” कहा था और उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त बताया था. 2011 और 2013 में वाइब्रेंट गुजरात समिट के मंच से उन्होंने मोदी की तुलना गांधी और पटेल से की थी. 2015 में उन्होंने ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी योजनाओं की प्रशंसा की.
इतिहास यह भी बताता है कि अंबानी परिवार और सत्ता के बीच रिश्ते हमेशा पहले से ही रहे हैं. 1990 के दशक में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान धीरूभाई अंबानी की कंपनी पर CBI रेड हुई थी. उस वक्त तत्कालीन CBI निदेशक त्रिनाथ मिश्रा को अचानक हटा दिया गया था, जिससे यह सवाल उठे कि क्या बड़े उद्योगपतियों और सत्ता के समीकरण जांच एजेंसियों की दिशा तय करते हैं?
ट्रम्प और मुकेश अंबानी के रिश्ते
इस बार तस्वीर थोड़ी और जटिल है, क्योंकि इसमें विदेशी राजनीति भी शामिल हो गई है. मुकेश अंबानी हाल के वर्षों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ करीबी रिश्तों में नजर आए. जनवरी 2025 में उन्होंने ट्रंप के शपथ ग्रहण से पहले वॉशिंगटन डिनर में हिस्सा लिया. रिलायंस ने मुंबई में ट्रंप ऑर्गनाइजेशन को रियल एस्टेट प्रोजेक्ट के लिए 10 मिलियन डॉलर का विकास शुल्क भी दिया. लेकिन अब ट्रंप ने भारत को रूसी तेल खरीदने पर “युद्ध से मुनाफा” कमाने का आरोपी बना दिया है और 25% टैरिफ लगा दिया है. इसे लेकर पीएम मोदी और ट्रंप के रिश्ते तल्ख हो गए हैं. ऐसे में ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि बदलते जियो पॉलिटिक्स का असर भारत की घरेलु राजनीति पर भी पड़ रहा है.
वनतारा विवाद और CBI की छापेमारी ने यह साफ कर दिया है कि अब अंबानी और मोदी के रिश्ते पहले जैसे सहज नहीं दिखते. विदेशी दबाव ने इस बहस को और जटिल बना दिया है.