स्वर्ग पाने की चाहत, मृत्यु पर विजय के अधिकार की चाह, सृष्टि पर वर्चस्व की भावना और इन सबको हासिल करने के लिए अपनाए गए तरीके जिसमें लालच, षड़यंत्र और काम वासना के इस्तेमाल की सोच संभवत: तबसे मनुष्यों के भीतर है जबसे मनुष्य इस धरती पर है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो मनुष्य कहां का है. सिंधु घाटी सभ्यता का या फिर सुमेरी सभ्यता का. प्रख्यात लेखक कमलेश्वर अपनी किताब ‘कितने पाकिस्तान’ में 2900 से 2350 ईसा पूर्व की एक कहानी का जिक्र करते हैं, जो है आज के ईराक में, लेकिन इसके पात्र हिंदू पौराणिक कहानियों जैसे ही हैं यहां तक की राजा या मनुष्य का स्वभाव भी.
सम्राट गिलगमेश सुमेरी सभ्यता का अत्यंत प्रतापी राजा था. उसके दुस्साहस के सामने पृथ्वी से लेकर आकाश के देवता तक पराजित हो चुके थे. विश्व को जितने के बाद जब सम्राट गिलगमेश ने मृत्यु पर मनुष्य की विजय का संकल्प लिया, तो सुमेरी सभ्यता से लेकर आर्य सभ्यता तक देव लोक कांप उठा.
तब सभी देवतागण परमदेव अनु के पास पहुंचे और मनुष्य की अमरता प्राप्त करने की इस चिर-कामना पर गहरी चिंता ज़ाहिर करते हुए बोले – अगर मनुष्य भी हम देवताओं की तरह अमरत्व प्राप्त कर लेगा तो हम नष्ट-भ्रष्ट हो जायेंगे. वह निरंकुश हो जायेगा. यदि वह मृत्यु को जीतकर हमारी सृष्टि पर आ गया, तो हमारा स्वर्ग, हमारा सुख-ऐश्वर्य सब नष्ट हो जायेगा.
तब गिलगमेश को हराने के लिए परमदेव अनु ने एक तरकीब निकाली और आकाश देवता के पुत्र एंकिदू को मनुष्य रूप में पृथ्वी पर भेजा. एंकिदू एकदम आदिम, जंगली और बर्बर था. उसके शरीर पर जंगली जानवरों की तरह बड़े-बड़े बाल थे. वह युरूक के जंगलों में रहने लगा था. वह जंगली जानवरों की तरह कच्चा मांस भी खाता था और कभी-कभी घास, फूल-पत्ते भी खा लिया करता था.
एक दिन युरूक राज्य का एक शिकारी जंगल में आया, जहां उसने एंकिदू को भयानक वनमानुष के रूप में देखा. वह बुरी तरह से डर गया और उल्टे पांव भागते हुए सम्राट गिलगमेश के पास जा पहुंचा. उसने सारी बातें गिलगमेश को बताते हुए कहा कि वह निश्चय ही अवतारी मनुष्य मालूम होता है.
उसकी बात सुनते ही सम्राट गिलगमेश क्रोधित हो उठा. उसने भरी सभा में गर्जना करते हुए कहा, ‘यह जरूर मेरे विरूद्ध किसी देवता की कोई चाल है, पर मैं उसकी हर चाल नाकाम कर दूंगा. मैं जानता हूं, ये देवतागण बड़े विलासी होते हैं. उसने तुरंत आदेश दिया कि राज्य के मंदिर की सबसे सुंदर देवदासी रूना को ले जाकर उसके पास छोड़ दो, वह निश्चित रूप से स्त्री की सुंदरता पर मुग्ध होकर उसका दास बन जायेगा.

रूना की खूबसूरती पर मुग्ध हो गया बर्बर एंकिदू
जब रूना जंगल में नग्नावस्था में गई तो सच में एंकिदू उसकी खूबसूरती देखकर उस पर मुग्ध हो गया और उसकी ओर खिंचा चला आया. यह अद्भुत बात थी कि रूना के साथ संभोग के बाद भी एंकिदू उससे अलग नहीं हुआ. वह उसे अपनी बलिष्ठ बांहों में लिए बैठा रहा और उसकी आंखों में देखता रहा. एंकिदू ने पहली बार प्रेम जैसी कोमल भावना को महसूस किया था. वह रूना की आंखों में अपने को भूल चुका था. एक दिन रूना ने कहा कि वह उससे बहुत प्रेम करती है पर वह उसे साधारण रूप में देखना चाहती है. उसने सम्राट गिलगमेश की प्रशंसा करते हुए, उसे उनके राज्य में चलने के लिए कहा तो एंकिदू तैयार हो गया.
सम्राट गिलगमेश और देवपुत्र एंकिदू का युद्ध
जब रूना एंकिदू को लेकर नगर में पहुंची तो उन्हें देखने के लिए समस्त नगरवासी उमड़ पड़े. वहीं नगर के विशाल द्वार पर सम्राट गिलगमेश पहले से ही एंकिदू की प्रतीक्षा कर रहा था.
जैसे ही दोनों ने एक-दूसरे को देखा, वे द्वंद युद्ध में कूद पड़े. देवताओं को पूरी उम्मीद थी कि मनुष्य और देव-पुत्र के इस युद्ध में एंकिदू गिलगमेश को बुरी तरह पराजित कर देगा. पर गिलगमेश एंकिदू को अपनी बलिष्ठ बांहों में ऐसे जकड़े हुए था कि उसके लिए छूटना मुश्किल हो रहा था. वह गिलगमेश के भुजाओं में जकड़ा हुआ छटपटा रहा था.
गिलगमेश ने अपने बाहों से उसका गला दबाते हुआ पूछा, ‘मैं जानता हूं, तुझे यहां मेरी हत्या करने के लिए भेजा गया है. बता कौन है वो, जिसने तुझे मुझे मारने के लिए भेजा है?’
देव-पुत्र अभी छल-कपट से अनभिज्ञ था. उसने सीधे बता दिया कि देवता अनु ने उसे गिलगमेश का वध करने के लिए भेजा है. जैसे ही गिलगमेश ने देवता अनु का नाम सुना, वह क्रोध से भर उठा. उसने कहा ‘वही अनु जिसके लिए मैंने राज्य में भव्य मंदिर का निर्माण करवाया, उसी ने मुझे मारने की योजना बनाई है. मैं उसे छोड़ूंगा नहीं.’ उसकी आवाज़ समस्त ब्रह्मांड में गूंज उठी. इसके साथ यह जानकर कि एंकिदू उसका वास्तविक शत्रु नहीं है , दोनों में मित्रता हो जाती है. सभी देवता एंकिदू की पराजय और गिलगमेश से उसकी मित्रता देखकर परेशान हो उठते हैं. वे परमदेव अनु के पास जाते हैं.

जब मनुष्यों की मित्रता की हुई पहली परीक्षा
एंकिदू के हृदय परिवर्तन के बाद परमदेव अनु ने सम्राट गिलगमेश को नष्ट करने के लिए एक भयंकर और विकराल सांड़ को जन्म देकर पृथ्वी पर भेजा. उस पागल विकराल वृषभ ने जैसे ही गिलगमेश पर आक्रमण किया, तो मित्रता का धर्म निभाते हुए एंकिदू ने उस सांड़ को सींगों से पकड़ लिया. उनमें घमासान मुठभेड़ हुई. सांड़ ने एंकिदू के चेहरे पर ज्वलनशील आग उगलते हुए कहा – “एंकिदु! क्या तू भूल गया कि हम दोनों को एक ही परमदेवता अनु ने जन्म देकर धरती पर भेजा है… क्या तू भूल गया कि हम दोनों का लक्ष्य गिलगमेश की हत्या है!”
तब एंकिदु ने उसके विशाल सिर को सींगों से पकड़ कर झकझोरते हुए कहा – “ऐ वृषभ, तू विवेकहीन पशु है… तुझे तो क्या, देवराज अनु को भी नहीं मालूम कि मित्रता किस चिड़िया का नाम है! मेरे जीवित रहते मेरे मित्र गिलगमेश को कोई नहीं मार सकता!”
यह सुनते ही वृषभ ने उन्मत्त होकर भयंकर आक्रमण किया तो सम्राट गिलगमेश ने वृषभ की गर्दन और पिछले भाग पर तेज़ प्रहार किए… अन्ततः वह सांड़ मारा गया. लेकिन एंकिदु बुरी तरह घायल हो गया था, उसकी स्थिति मरणासन्न हो गई थी. गिलगमेश ने यूनान के बड़े से बड़े वैद्यराजों और हकीमों को बुलाकर उपचार करवाया. देवदासी रूना ने, जिसने एंकिदु से प्रेम किया था, बहुत सेवा की. गिलगमेश अपने मरणासन्न मित्र को धीरज बंधाता रहा—मित्र एंकिदू! तुम जीवित रहोगे… ऊर और कीश के कब्रिस्तानों में अब कोई मनुष्य दफ्न न होगा… मनुष्य जीवित रहेगा…!
फिर उसने एंकिदू को देखा तो उसका दिल दहल उठा. वह उसे छू-छू कर विलाप करने लगा—मित्र एंकिदू! कैसे हो तुम? कैसी नींद है यह? इस नींद ने तुम्हें क्यों जकड़ लिया है? एंकिदू मेरे मित्र! तू काला क्यों पड़ गया है? तू मेरी आवाज़ क्यों नहीं सुनता?
गिलगमेश के विलाप के बावजूद एंकिदू ने आंखें नहीं खोलीं. गिलगमेश ने उसके हृदय पर हाथ रखा, उसकी गति बन्द थी… वह फूट-फूट कर रोने लगा ‘मित्र एंकिदू… तूने मेरे लिए पीड़ा सही है. मेरी यातना तूने अपने ऊपर ली है… तूने मित्रता के नाते मृत्यु का वरण किया है. और तब अपने आंसू पोंछ कर सम्राट गिलगमेश ने घोषणा की – सुनो! देवताओं सुनो! पृथ्वी सम्राट गिलगमेश की आवाज़ ! यह दूसरी आवाज़ है! यह भोग-विलास और पशुवत् दैहिक ऐश्वर्य की आवाज़ नहीं, यह मनुष्य की पीड़ा, दुःख, यातना, श्रम और मृत्यु से उसे मुक्त करने की आवाज़ है!
गिलगमेश की आवाज़ ब्रह्मांड में गूंजने लगी— मैं पीड़ा से लड़ूंगा… यातना सहूंगा… कुछ भी हो मैं अपने मित्र और मनुष्य मात्र के लिए मृत्यु को पराजित करूंगा! मैं मृत्यु से मुक्ति की औषधि खोज कर लाऊंगा! सम्राट गिलगमेश की घोषणा से एक बार फिर देवलोक कांपने लगा… देव सभ्यता अवसन्न रह गई.
अमरत्व की खोज का संकल्प
तभी देवी ईना ने देवताओं को बताया— प्रलय के समय आर्य सभ्यता की एक मत्स्य कन्या ने गिलगमेश को अमरता प्राप्त करने का रहस्य बताया था… मत्स्य कन्या के कहे मुताबिक गिलगमेश ने मृत्यु के विरुद्ध जीने की शक्ति रखने वाले सभी जीवकणों–अणुओं को अपनी नाभि में छुपा लिया था. इसलिए वह जल प्रलय में जीवित रह सका. उस मत्स्य कन्या ने ही उसे शुरुप्पक नगर के जिउसुद्दु की जानकारी दी थी, जिसके पास मृत्यु से मुक्ति की औषधि सुरक्षित थी. किसी को मालूम नहीं था कि जल प्रलय के बाद शुरुप्पक का वह जिजुसुद्दु उस औषधि को लेकर कहां छुप गया था. तो सुनो सुमेर सभ्यता के देवताओं! सम्राट गिलगमेश निश्चय ही शुरुप्पक के उस जिजुसुद्दु का पता लगाकर रहेगा… उस औषधि को प्राप्त करके मनुष्य को अमरता देगा… इसलिए मैं तुम्हारा देवलोक छोड़कर मर्त्यलोक में जा रही हूं! क्योंकि सम्राट गिलगमेश उस सागर तक पहुंच गया है, जहां से वह जल मार्ग जाता है, जहां अटल जलराशि के नीचे के प्रदेश में शुरुप्पक का जिउसुद्दु मृत्यु से मुक्ति की औषधि लिए छुपा बैठा है.
यह सूचना सुनते ही देवताओं की मंडली में फिर भूकंप आ गया. अब क्या होगा? क्या दूसरी प्रलय होगी ? कोलाहल और जबरदस्त शोर के बीच परमदेवता अनु ने ऐलान किया—इससे पहले कि गिलगमेश सागर की अटल गहराइयों में उतर सके, उसे बन्दी बनाया जाए!
— अब तुम उसकी परछाई को भी बन्दी नहीं बना सकते! देवी ईना ने कहा.
— रोको! रोको! परमदेवता ने अपनी सृष्टि के विषैले जीव-जन्तुओं को पुकारा—विषधर भुजंगो, विषैले वृश्चिको! गिलगमेश को अपने नागपाश में ले लो. अपने विषैले दंश से उसके शरीर को निष्प्राण कर दो… और तब ईना सहित सभी देवियों ने देखा—समुद्र में छलांग लगाने के लिए उद्यत गिलगमेश के शरीर पर सैकड़ों विषैले सांप लिपट गए. उन्होंने उसे जकड़ लिया था. सैकड़ों बिच्छू उसके शरीर पर डंक मार रहे थे…
यह दृश्य देखकर देवियां विचलित हो उठीं. लेकिन तभी गिलगमेश ने उन विषैले विषधरों और वृश्चिकों की परवाह न करते हुए अपनी बलिष्ठ भुजाओं को पसारा… और… और… उसने उस सागर में छलांग लगा दी…
सागर ने अपनी उत्ताल तरंगों में उसका स्वागत किया और कहा—धरती पुत्र! जब तक तेरा एक अंग भी सक्रिय रहेगा, तब तक इन विषधरों और वृश्चिकों का विष प्रभावहीन होता जाएगा… मेरा जल पृथ्वी के हर विष को शमित करता है… तू पाताल लोक की अपनी यात्रा पूरी कर! और गिलगमेश अथाह पानी के उस तलहीन संसार में नीचे उतरता गया… उतरता चला गया. सदियां बीत गईं और अब तक मनुष्य मात्र के लिए मृत्यु को पराजित करने के लिए गिलगमेश की यात्रा जारी है… औषधि की तलाश में वह अब भी सागर तल की गहराइयों में उतरता जा रहा है… उतरता चला जा रहा है…
मान्यताओं के अनुसार सम्राट गिलगमेश की खोज आज भी जारी है. उसे मेसोपोटामिया या सुमेरी सभ्यता का ऐतिहासिक एवं पौराणिक पात्र माना जाता है, वैसे ही जैसे हिंदू पुराणों के तमाम पात्र हैं जैसे हिरण्यकशिपु, बालि, महिषासुर, शुम्भ-निशुम्भ आदि कितने ही किरदारों की कथायें मनुष्य जाति और देव लोक के बीच जीवन और मृत्यु पर विजय के लिए युद्ध की कहानियां बयान करती हैं. ‘कितने पाकिस्तान’ में सम्राट गिलगमेश की इस कथा के माध्यम से कमलेश्वर ने मनुष्य जाति की इसी अदम्य जिजीविषा और अमरत्व प्राप्ति की चिर-कामना को पौराणिक कथा के माध्यम से व्यक्त किया है.