पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुए “Strategic Mutual Defence Agreement” रक्षा समझौते को लेकर वैसे तो पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है. लेकिन भारत के लिहाज से इसे बड़ा रणनीतिक समझौता क्यों माना जा रहा है.
दरअसल सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुए इस समझौते का लब्बोलुआब ये है कि ‘किसी भी एक देश पर हमला, दोनों देशों पर हमला माना जाएगा’, यह समझौते की मूल धारा है, जो इसे एक कलेक्टिव डिफेंस ट्रीटी के दायरे में लाती है. इसका मतलब हुआ कि अगर पाकिस्तान से भारत का युद्ध हुआ तो सऊदी अरब भी इस युद्ध में पाकिस्तान की ओर से मैदान में उतर जाएगा. या फिर सऊदी अरब पर इजरायल हमला करता है तो पाकिस्तान भी इजरायल के खिलाफ लड़ेगा.
सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुए इस समझौते में भारत और इजरायल का उदाहरण इसलिए दिया जा रहा है क्योंकि इजरायल के संबंध सऊदी अरब और पाकिस्तान दोनों से ही कभी ठीक नहीं रहे लेकिन भारत के संबंध सऊदी अरब से कभी खराब भी नहीं रहे हैं. खासकर 2014 के बाद पीएम मोदी तीन बार सऊदी अरब की यात्राएं कर चुके हैं. साल 2016, 2019 और 2025 में. इसी तरह सऊदी के क्राउन प्रिंस ने भी 2019 और 2023 में भारत की यात्रा की थी. इसके बाद से दावा किया जा रहा था कि दोनों देशों के संबंध नई ऊंचाई पर पहुंच रहे हैं. दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते भी बढ़े. भारत और सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय व्यापार अरबों डॉलर का है. ऊर्जा, इंफ्रास्ट्रक्चर, और IT जैसे क्षेत्रों में सहयोग लगातार बढ़ रहा है.
फिर इस समझौते को भारत के खिलाफ क्यों देखा जा रहा है?
विदेशी मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने एक्स पर लिखा है कि ‘पीएम मोदी ने सऊदी अरब को लुभाने के लिए कई सालों का वक्त लगाया. कई बार उन्होने दौरा किया और संबंधों को रणनीतिक आयाम देने की कोशिश की. अप्रैल में भी वह सऊदी अरब गए थे. लेकिन मोदी के बर्थडे पर भारत को सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने बड़ा झटका दिया है’.
हालांकि सऊदी अरब ने साफ कर दिया है कि यह समझौता किसी भी विशेष देश के खिलाफ नहीं है और भारत-सऊदी संबंध अब तक के सबसे मजबूत दौर में हैं. लेकिन क्या समझौते में सऊदी अरब ने ये शर्त रखी है कि वो पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध की स्थिति में तटस्थ रहेगा?
दरअसल पाकिस्तान कभी भी भारत के खिलाफ युद्ध में नहीं टिक पाया है. सऊदी अरब के पास भी इतनी सामरिक ताकत नहीं है कि वो भारत के खिलाफ पाकिस्तान को निर्णायक मदद दे सके. लेकिन सऊदी अरब के पास तेल का अकूत भंडार है और बेशुमार दौलत भी. मीडिल ईस्ट के कई देशों पर उसका प्रभाव भी है. ऐसे में यह समझौता भले ही युद्ध के मैदान में भारत के लिए चुनौती ना बने लेकिन कूटनीति के क्षेत्र में तनाव बढ़ाने वाला तो है ही.
वहीं इस समझौते के पीछे अमेरिका के भी होने की संभावना है. क्योंकि सऊदी अरब पर अमेरिकी प्रभाव किसी से छुपा नहीं है. तो पाकिस्तान के प्रति भी अमेरिका के रूख में हाल के दिनों में नरमी आई है और भारत से ट्रंप का चिढ़ना भी दिख रहा है. ऐसे में भारत को परेशान करने के लिए इस समझौते की रूपरेखा के पीछे अमेरिका की भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता.
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मोहम्मद आज़म ने कहा कि ‘यह भारत की विदेश नीति की विफलता है. भारत लगातार यह कह तो रहा है कि हम पाकिस्तान को दुनिया से अलग कर रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान को वह अलग नहीं कर पा रहा. अभी SCO में आतंकवाद विरोधी दल का अध्यक्ष पाकिस्तान बना दिया जाता है. और उनके आर्मी चीफ ट्रंप के साथ बैठकर डिनर करते हैं. ये तमाम बातें दर्शाती हैं कि जो भारत की विदेश नीति है, वह विफल है. हमारे सऊदी अरब से बहुत अच्छे संबंध हैं, सऊदी अरब को हमें समझाना चाहिए था, लेकिन शायद हम इसमें विफल रहे’.
फिलहाल भारत इस पूरे घटनाक्रम पर अपनी नजर बनाए हुए हैं.