‘उस रात प्रेमचंद को नींद नहीं आ रही थी. रात के एक बजने को हो आये थे, पर उनकी आंखों में ज़रा भी नींद नहीं थी. शिवरानी भी उनके पास बैठीं जग रहीं थीं’.
दरअसल मुंशी प्रेमचंद उस रात कुछ बेचैन थे. कुछ बात उनके दिल पर बोझ की तरह थी. जिसे वो अपनी पत्नी शिवरानी देवी से साझा करना चाह रहे थे लेकिन एक झिझक भी थी.
समाज, देश, जाति, धर्म और धारणाओं से जुड़े तमाम मुद्दों को बेबाकी से शब्दों के जरिए उकेरने वाले महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद आखिर किस बात को कहने से झिझक रहे थे? मुंशी प्रेमचंद के जीवन से जुड़ी इस दिलचस्प कहानी का जिक्र खुद उनकी पत्नी शिवरानी देवी ने अपनी किताब ‘प्रेमचंद: घर में’ करतीं हैं. प्रेमचंद के अंतिम दिनों के बारे में लिखते हुए, वे बताती हैं कि अपनी बीमारी के समय उन्होंने उनसे एक घटना का जिक्र किया.
‘उस रात प्रेमचंद को रात में नींद नहीं आ रही थी. रात के एक बजने को हो आये थे, पर उनकी आंखों में ज़रा भी नींद नहीं थी. शिवरानी भी उनके पास बैठीं जग रहीं थीं.
प्रेमचंद अपने सिर से हाथ खींचते हुए शिवरानी से बोले, ‘इधर आओ. जब नींद नहीं आती तो कुछ बात ही करें.’
वे बोलीं – ‘नहीं, आप सो जाइये. रात ज़्यादा हो गयी है’.
वे बोले – ‘मैं घंटों से सोने और तुम्हें सुलाने की कोशिश में हूं. पर नींद आये तब न! देखो, तुमसे अपनी एक चोरी का हाल बताऊं. पर मुंह के बाहर निकालते झिझक होती है.’
वे बोलीं – ‘कैसी चोरी?’
प्रेमचंद ने कहा – ‘सुनो. मैंने अपनी पहली स्त्री के जीवन-काल में ही एक और स्त्री रख छोड़ी थी’.
वे शिवरानी देवी का चेहरा देखने लगे थे, पर उनके चेहरे पर गुस्से या पीड़ा की कोई प्रतिक्रिया न पाकर, उन्होने आगे अपनी पत्नी से कहा- ‘तुम्हारे आने पर भी उससे मेरा सम्बन्ध था’.
उनकी नज़रे शिवरानी देवी के चेहरे पर टिकी हुई थीं. शिवरानी देवी उनकी आंखों में देखते हुए बोली थीं – ‘मुझे मालूम है’.
वे लिखती हैं कि यह सुनकर वे मेरी ओर देखने लगे थे. उस देखने में कुछ ऐसा भाव था जैसे वे मेरा चेहरा पढ़ लेना चाहते हों. मैंने उनको अपनी तरफ देखते देखकर अपनी निगाह नीची कर ली. बड़ी देर तक वे गम्भीर होकर मेरे चेहरे की ओर देखते रहे. मैं शर्म से सिर झुकाये थी. बार-बार मेरे दिल के अन्दर ख़याल आ रहा था कि इन बीती बातों के कहने का रहस्य क्या है?
कुछ देर बाद प्रेमचंद शिवरानी से बोले – ‘तुम मुझसे बड़ी हो.’
उनके उस कथन का रहस्य उनकी समझ में बिल्कुल नहीं आया. वे कहने लगीं – ‘आज आपको हो क्या गया है ? मैं बड़ी हो सकती हूं?’
तब वे हंसते हुए बोले – ‘तुम हृदय से सचमुच मुझसे बड़ी हो. इतने दिन मेरे साथ रहते हुए भी तुमने भूलकर भी ज़िक्र नहीं किया.’
यह सुनकर शिवरानी देवी ने उनका मुंह बन्द कर कहा – ‘मैं इसे नहीं सुनना चाहती’.
वे लिखती हैं – ‘उस वक़्त मेरे दिल में यही ख़याल आया कि बात क्या है? आज इन बीती बातों को इस तरह से करने का रहस्य क्या है? इन सब बातों को सोच-सोच कर मैं शिथिल पड़ती जा रही थी’.
प्रेमचंद अपनी पत्नी की मनोस्थिति समझते हुए बोले – ‘मैं तुमसे कई दिनों से अपनी बातें बता देने का इच्छुक था.’
वे बोलीं– ‘मुझे इन बातों को सुनने की इच्छा नहीं है.’
प्रेमचंद स्थिर आंखों से उनकी ओर देखते हुए बोले थे – ‘कोई दूसरा समय होता तो शायद मैं भी न कहता. मगर इस समय मैं बिना इस बातों के कहे तुमसे रह भी नहीं सकता. मैं जितना ही तुम्हारे विषय में सोचता हूं, उतना ही मुझे क्लेश होता है. मैं चाहता हूं तुम मेरे पास से एक सेकेण्ड के लिये भी न हटो. न जाने मुझे इधर कई सालों से क्या हो गया है. तुम कहीं चली जाती हो तो मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता.’
वास्तव में प्रेमचंद शिवरानी देवी से काफी प्रेम करते थे. भले ही अपने अंतिम समय में उन्होने यह रहस्य खोला हो, पर वे कभी भी अपनी पत्नी को धोखा देना या उन्हें दुख पहुंचाना नहीं चाहते थे. लेकिन अपने जीवन में उनके अलावा एक और स्त्री के होने की बात वो जीवन के इस पड़ाव पर शिवरानी देवी से छिपाना भी नहीं चाहते थे.
अपने प्रेम संबंध के इस रहस्य का मुंशी प्रेमचंद ने ताउम्र किसी से जिक्र नहीं किया कि दो पत्नियों के अलावा उनका एक स्त्री से भी प्रेम-संबंध था, जिसे वे अपनी अंतिम सांसो तक भी भुला न सके थे.
प्रेमचंद की पहली शादी
प्रेमचंद का पहला विवाह बस्ती जिले के रामापुर गांव में हुआ था. उनके पिता ने यह शादी तय की थी. जैसा उस समय प्रचलन था कि घर के बड़े ही शादियां तय करते थे. इस शादी के बारे में प्रेमचंद को कुछ नहीं पता था.
जैसा कि शिवरानी देवी प्रेमचंद की जीवनी में बताती हैं कि ‘उनकी पहली पत्नी प्रेमचंद से उम्र में काफी बड़ी थीं और जबान से भी मीठी न थी, इसलिए घर में आये दिन क्लेश होता रहता था. जिस कारण यह रिश्ता ज्यादा दिन तक न चल सका’.
प्रेमचंद की दूसरी शादी
पहली शादी के छूटने के बाद मुंशी प्रेमचंद ने शिवरानी देवी से दूसरी शादी की थी, जो बाल विधवा थीं. वास्तव में एक विधवा स्त्री से शादी करने का प्रेमचंद का यह निर्णय उस दौर में काफी बोल्ड और प्रगतिशील कदम था. जो समाज की रूढ़िवादिता को उनकी कहानियों की तरह ही चुनौती देता था.
प्रेमचंद अपनी दूसरी पत्नी शिवरानी देवी से बहुत प्यार करते थे. उन्होने न सिर्फ जीवन भर शिवरानी देवी को भरपूर मान-सम्मान और प्यार दिया, बल्कि लेखन के क्षेत्र में भी उन्हें लाये. शिवरानी देवी अगर लेखन के क्षेत्र में न आतीं तो शायद प्रेमचंद की इस लव स्टोरी से दुनिया अंजान रह जाती.